Tuesday, August 21, 2012

श्रेष्ठ विचार

कई लोगोँ की मान्यताहै कि ईश्वर
को पाने के अनेक रास्ते हैँ। लेकिन सोचने
वाली बात है कि अनेक रास्ते किसके लिए
होते हैँ?... जो चीज एकजगह स्थित
होती है। जैसे मान लेँ अमेरिका, वहाँ जाने के
लिए अनेक रास्ते हैँकोई वायुमार्ग से
जाएगा, कोई सड़क से, तो कोई जहाज से
जाएगा क्योँ?.. क्योँकि अमेरिका एक जगह
स्थित है। वहीँ हम देखेँ, हवा, जो सभी जगह
व्याप्त है उसे केवलनाक के
द्वारा ही ग्रहण किया जा सकता है
किसी और अंग कान, आँखआदि के
द्वारा नहीँ।
इसी तरह चूकि वो ईश्वर सर्वव्यापी हैँ
इसलिए उनके पाने का रास्ता भी केवल और
केवल एक ही हो सकता है अनेक नहीँ। हमारे
सभी धार्मिक ग्रंथोँ ने परमात्मा-
प्राप्ति का केवल एकही मार्ग बताया है।
वो है- एक ऐसे पूर्ण गुरु
की शरणागति जो हमेँ दस बीस मार्गोँ मेँ
ना उलझाए बल्कि उस एक ही शाश्वत,
सनातन मार्ग मेँ दीक्षित कर देँ। अर्थात
वो दीक्षा के ही समय हमेँ दिव्य-
दृष्टि प्रदान कर परमात्मा के तत्वरुप
का दर्शन करा देँ। जिसे रा0च0मा0 मेँ
प्रकाश, बाइबल मेँ divine light, कुरान मेँ
नूर, गुरुवाणी मेँ ज्योति कहा गया। शब्द
बेशक अलग हैँ पर है सब एक ही। श्रीकृष्णने
भी अर्जुन से कहा-"दिव्यं ते
ददामि चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम।
अर्थात मैँ तुम्हेँ वो दिव्य-दृष्टि देता हूँ
जिससे तू मेरे वास्तविक स्वरुप को देख
पाएगा।"
उसके दर्शन के बाद ही हमेँ समझ आती है
कि हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
को अलग-अलग समझते हैँ लेकिन वास्तव मेँ हम
सब उस एक परम-ज्योति के ही अंश हैँ और
इसलिए आपस मेँ भाई-भाई हैँ।

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